रंग बदलते लोनार झील आज कल चर्चा का विषय बनी हुई हैं जो कि अपने रंग कभी लाल कभी नीला और अभी हाल ही में इसका रंग गुलाबी हो गया है। यह झील महाराष्ट्र के बुलढाणा नाम के एक जिले में स्थित है और यह एक खारे पानी की झील है। यदि इसकी दूरी की बात की जाय तो यह औरंगाबाद एयरपोर्ट से करीब १५० Km के करीब है, और इसका सबसे नजदकी रेलवे station है जालना जो कि यहां से ९०Km की दूरी पर पड़ता है, लुनार झील का निर्माण एक उल्का पिंड जो कि पृथ्वी में आ के गिरा था,उस उल्का पिंड का पृथ्वी से टकराने के कारण हुआ था। कई प्रकार की संस्थाएं जैसे कि संयुक्त राज्य भूगर्भ सर्वेक्षण नाम कि संस्था तथा सागर विश्वविद्यालय और भौतिक अनुसंधान नामक प्रयोगशाला ने इस स्थल का व्यापक अध्ययन किया फिर भी इस झील के रंग बदलने का उचित कारण क्या है इसका सटीक तरीके से पता नहीं लगा पाए।
यह झील अपने में कई रहस्य समेटे हुए है यह दुनिया कि सबसे पुरानी उल्का पिंड झील मानी जाती है, करीब ५७०००० साल पुरानी इस झील का वर्णन अकबर ए आईनी,और स्कन्द पुराण में और कई सारे वेदों में भी मिलता है।
और यही नही रामायण में भी इसका उललेख मिलता है कि श्रीराम को पंचाप्सर सरोवर में संगीत की ध्वनि सुनायी दी थी। यहाँ मण्डकरणी ऋषि 5 अप्सराओं के साथ जल में रहते थे। जहां सीता नहानी, राम (गया) कुण्ड, पाँच अप्सराओं के मंदिर सभी की कहानी श्रीराम वनवास से जुड़ी हुई है।
नासा से लेकर दुनिया की कई एजेंसी इस पर शोध कर चुकी है शोध में ये बात सामने आई है कि इसका निर्माण एक उल्का पिंड के पृथ्वी से टकराने के कारण हुआ था लेकिन उल्का पिंड कहां गई इसका कोई पता नी चला।
यहां प्राचीन लोनार्धर मन्दिर ,कमलजा मंदिर, मोठा मारुति मन्दिर है और ये सब करीब एक हजार साल पुरानी है इसके अलावा यहां दैत्यासुदन मन्दिर भी शामिल है जो भगवान विष्णु , दुर्गा, सूर्य और नृसिंह को समर्पित है जिनकी संरचना खजुराहो के मन्दिरों जैसी मिलती जुलती है।
इस झील की एक कहानी भी प्रचलित है कि यह लोनासुर नाम का एक राक्षस था जिसका वध भगवान विष्णु ने किया था और उसका रक्त भगवान के पांव के अंगूठे पर लग गया था जिसे छुड़ाने के लिए भगवान ने मिट्टी पर अपना अंगूठा रगड़े और यहां गहरा गड्ढा बन गया।
इस झील को असली पहचान तब मिली जब इसे देखने १८२३ में ब्रिटिश अधिकारियों में से एक जे ई अलेक्जेंडर नाम के एक शोधकर्ता ने देखा और इसे देखते ही वो भी अचंभित हो गए।
७० के दशक में कुछ भु वैज्ञानिको ने भी यह बताया था कि यह झील ज्वालामुखी के फटने की वजह से बनी है लेकिन बाद में ये बात ग़लत साबित हुआ क्युकी यदि ये ज्वालामुखी के फटने से बनी होती तो इतनी गहरी ना होती। फिर नासा के वैज्ञानिकों ने इसे बैलेस्टिक चट्टान से बना हुआ बताया लेकिन इसका भी कोई ठोस प्रमाण नई मिला।
इस झील के गुण के कारण इसे मंगल ग्रह का झील भी कहा जाता है क्यों कि इसके रासायनिक गुण वहां के झीलों के रासायनिक गुण की तरह मेल कहते है।
यही वजह है इस पर हमेशा कुछ न कुछ शोध होते रहे हैं।
लेकिन आज तक कोई सटीक प्रमाण इसका नई मिला है कि यह झील कैसे निर्मित हुई और इसके समय समय पर रंग बदलते रहने का उचित कारण क्या है।