Danveer Karna ki Kahani in Hindi
कुंती भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव की बहन और भगवान कृष्ण की बुआ लगती थीं। कुंती के पिता का नाम शूरसेन था।
भगवान कृष्ण की बुआ कुंती ने अपने महल में कई ऋषि मुनियों की सेवा की। एक बार कुंती के पिता राजा शूरसेन से मिलने वहां ऋषि दुर्वासा आए तब कुंती ने दुर्वासा ऋषि की खूब भक्ति भाव से सेवा की ।
कुंती की सेवा भाव से खुश होकर दुर्वासा ऋषि ने कुंती सेे कहा, हे देवी जिस प्रकार से तुमने मेरी सेवा की उससे मै बहुत प्रसन्न हुआ, इसलिए मैं तुमको एक मंत्र देता हूं जिसके प्रयोग से तुम जिस भगवान को याद करोगी वह तुरंत ही तुम्हारे सामने आएगा और तुम्हारी मनोकामना पूरी करेगा। जब उनको ये मंत्र मिला था तब कुंती की शादी नहीं हुई थी वो तब कुंवारी थी। एक दिन कुंती के मन में आया कि क्यों न इस मंत्र की जाँच की जाए। क्या यह ऐसा है? फिर उन्होंने एक दिन सूर्यदेव का स्मरण कर उस मंत्र का पाठ किया। उसी क्षण सूर्यदेव प्रकट हुए। अब कुंती परेशान हो गई कि अब क्या करें?
सूर्यदेव ने कहा, देवी! मुझे बताओ कि तुम मुझसे क्या चाहती हो। मैं आपकी हर मनोकामना अवश्य पूरी करूँगा इस पर कुंती ने कहा, हे भगवान! मुझे आपसे किसी भी प्रकार की अभिलाषा नहीं है। मैंने मंत्र की सत्यता का परीक्षण करने के लिए जप किया।
कुंती के ये वचन सुनकर सूर्यदेव ने कहा, हे कुंती! मेरा आना व्यर्थ नहीं हो सकता। मैं तुम्हें एक बहुत शक्तिशाली और परोपकारी पुत्र होने का वरदान देता हूं , इतना कहकर सूर्यदेव वहां से चले गए। फिर कुछ समय बाद कुंती गर्भवती हो गईं।
जब कुंती गर्भवती हो गई, तो वो लोक लज्जा के कारण किसी को कुछ नहीं बता सकी और इस बात को छिपाए रखा। फिर एक दिन नौ महीने बाद उनके गर्भ से एक पुत्र का जन्म हुआ जो बचपन से ही कवच कुंडल धारण किए हुए था।
कुंती ने अपने उस पुत्र को एक टोकरी में रखकर मध्य रात्रि को नदी में प्रवाहित कर दिया।
लड़का गंगा में बह रहे एक किनारे से बहने लगा। उसी समय धृतराष्ट्र का सारथी जिसका नाम अधिरथ था उस तट पर अपने घोड़े को पानी पिला रहा था। तभी उसकी नजर टोकरी में बहते हुए उस लड़के पर पड़ी।फिर अधिरथ ने उस बच्चे को उठाकर आस पास उस बच्चे के माता पिता की खोज की आख़िरकार जब उसे कोई नहीं दिखा तो उस लड़के को अपने घर ले आया। अधिरथ निःसंतान थे अतएव उन्होंने इसे भगवान कि मर्जी समझ कर कर्ण का पालन पोषण करने लगे।
अधिरथ की पत्नी राधा ने कर्ण को अपने बेटे की तरह लालन पालन किया। बच्चे के कान बहुत सुंदर थे, इसलिए उसका नाम कर्ण रखा गया। अधिरथ और राधा ने कर्ण का पालन-पोषण किया जो कि जाती से सूत थे , इसलिए कर्ण को सूतपुत्र कहा गया और राधा ने उन्हें पाला था, इसलिए उन्हें राधे भी कहा जाता था।
दानवीर कर्ण का विवाह
हिन्दू पुराण के अनुसार कर्ण की दो पत्नियां थीं जिसकी कहानी इस प्रकार है
चूंकि कर्ण सूत पुत्र थे इसीलिए कोई क्षत्रिय राजा अपनी बेटी की शादी उनसे नहीं करना चाहता था और
द्रौपदी के स्वयंवर में भी द्रौपदी ने कर्ण को सूत पुत्र कह शादी से मना कर दिया जिससे कर्ण बहुत दुखी हुए।
अपने बेटे को इस तरह दुखों से घिरा देखकर, अधिरथ ने उसकी शादी के लिए लड़की की तलाश शुरू की। तब उसे दुर्योधन के विश्वासपात्र सारथी सत्यसेना की बहन रुशाली की याद आई। वह बहुत चरित्रवान बेटी थी। क्यों की रुशाली भी एक सूत कन्या थी इसीलिए कोई सामाजिक बाधा भी नहीं थी। अधिरथ ने कर्ण को रुशाली से शादी करने के लिए कहा। कर्ण अपने पिता के आदेश को कैसे मना कर सकता था, इसलिए वह शादी के लिए राजी हो गया फिर
दोनों की धूमधाम से शादी हुई ।
कर्ण की दूसरी शादी की कहानी एक फिल्म की पटकथा जैसी लगती है। इस कहानी में दो नायिकाएँ थीं, जिनमें से कर्ण ने एक से विवाह किया।
एक बार राजा चित्रावत की बेटी अंशावरी और उसकी नौकरानी पद्मावती ,जिसे सुप्रिया भी कहा जाता है एक दिन सैर के लिए निकली थी।
तभी दुश्मन देश के सैनिकों ने उन पर हमला कर दिया। अंशावरी के प्राण संकट में देखकर पद्मावती उनका बचाव करते वक्त आहत हो गईं। उसी समय अंगराज कर्ण वहां से गुजर रहे थे तो उन्होनें दो लड़कियों को मुसीबत में देखकर उन्होंने उनकी मदद की और अपने बाणों से सैनिकों को मार डाला। इस दौरान कर्ण खुद भी घायल हो गए। फिर
पद्मावती ने देर न करते हुए राजकुमारी और कर्ण को रथ में बिठा कर राजकुमारी को उनके महल में छोड़ने के बाद, वह कर्ण के साथ उसके घर आई। जहां वैद्य ने उसका इलाज किया।
जब कर्ण ने अपनी आँखें खोलीं, तो उन्होंने पद्मावती को अपने सामने पाया। दोनों उक्त घटना के बारे में बात कर रहे थे तभी एक सैनिक महल से आया और उसने कर्ण से कहा कि राजा चित्रावत तुम्हारे बहुत आभारी है। वे चाहते हैं कि आप उनके महल में रहें। तब कर्ण महल में पहुँचे, तो राजकुमारी अंशावरी ने उनका स्वागत किया।
कर्ण और अंशावरी के बीच एक अलग तरह का रिश्ता बन गया था। दोनों मन ही मन एक दूसरे को पसंद करने लगे थे।और दूसरी तरफ पद्मावती भी कर्ण को मन ही मन चाहने लगी थीं। और अंशावरी ने पद्मावती के अलावा किसी से भी अपने मन की बात नहीं कही। इसलिए उसने पद्मावती से कहा कि वह कर्ण को पसंद करती है। यह सुनकर, पद्मावती ने अपने मन में अपनी भावनाओं को छिपा लिया।
कुछ समय बाद जब कर्ण महल छोड़ कर जाने लगे तब राजा चित्रावत ने उनसे कहा कि तुमने मेरी पुत्री की रक्षा की है, तुम मुझसे जो चाहो मांग सकते हो।
कर्ण ने देर न करते हुए राजकुमारी अंशावरी का हाथ माँगा। यह सुनकर राजा चित्रावत क्रोधित हो गए। उन्होंने कहा कि मुझे आपकी वीरता पर पूरा भरोसा है लेकिन समाज और जाति व्यवस्था भी कुछ है। मैं अपनी बेटी की शादी एक सूत पुत्र से नहीं करूंगा। यह दूसरा मौका था जब कर्ण के विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया गया।
फिर कर्ण वहाँ से चला गया, फिर राजा ने बिना देर किए अंशावरी के स्वयंवर की घोषणा की। जब कर्ण को इस बात का पता चला तो वो भी स्वयंवर में पहुंचे। जिसे देखकर राजा चित्रावत फिर से क्रोधित हो गए।
बैठक में उपस्थित सभी राजकुमारों ने कहा कि अगर सूतपुत्र इस स्वयंवर में शामिल होंगे, तो हम हिस्सा नहीं लेंगे। कर्ण ने उन्हें चुनौती दी कि यदि कोई भी मुझे यहां अपने बल और कौशल से हरा देगा तो मै इस स्वयंवर से चला जाऊंगा तब सभी राजकुमारों ने कर्ण से युद्ध किया और एक के बाद एक सभी राजकुमार कर्ण से हार गए उस समय अंशावरी और पद्मावती दोनों वहां मौजूद थे। अंशावरी ने सभी के सामने कर्ण से शादी करने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन कर्ण ने उसे अस्वीकार कर दिया।
कर्ण ने कहा कि तुम मेरी ताकत देखकर शादी करने को बोल रही हो पर मुझे तुम्हारी दया की आवश्यकता नहीं है। इसके बाद वह पद्मावती के पास पहुंचे और कहा कि मुझे प्यार की जरूरत है। पद्मावती ने कर्ण को देखा और उसकी मंशा को समझा। कर्ण ने अंशावरी के माला को पद्मावती को सौंप दिया और दोनों ने वहीं शादी कर ली।
दानवीर कर्ण के पुत्र
इस प्रकार कर्ण की दो पत्नियाँ थीं और दोनों सुतकन्या थीं। कर्ण को इन दोनों पत्नियों से नौ पुत्र प्राप्त हुए। कर्ण पुत्रों के नाम थे – वृषसेन, वृशकेतु, चित्रसेन, सत्यसेन, सुशेन, शत्रुंजय, द्विपत, प्रसेन और बनसेन। इन सभी ने कौरवों की ओर से महाभारत के युद्ध में भाग लिया था। जिसमें 8 वीरगति को प्राप्त हुए थे। केवल एकमात्र कर्ण का पुत्र बचा था जिसका नाम वृशकेतु था।
वृशकेतु एकमात्र पुत्र था जो युद्ध के दौरान बच गया, जब पांडवों को पता चला कि कर्ण उसका अपना भाई है, तो उन्हें बहुत पीड़ा हुई। पांडवों ने अपने हाथों से अपने भाई और उनके वंश को नष्ट कर दिया। केवल एक पुत्र वृशकेतु जीवित बचा था। महाभारत के बाद, पांडवों ने फैसला किया कि वे इंद्रप्रस्थ का पूरा काम वृषकेतु को सौंप देंगे।
उसने अपने द्वारा किए गए अपराध के लिए वृशकेतु से माफी मांगी और सारी जिम्मेदारी उसे सौंप दी। जबकि कर्ण की पत्नियों में से एक, रुशाली ने, कर्ण के अंतिम संस्कार के समय सतित्व को स्वीकार कर लिया।
दानवीर कर्ण का अंतिम दान
दानवीर कर्ण एक महान योद्धा थे और उनको मार पाना किसी के लिए सम्भव नहीं था क्यूं की कर्ण के पास जन्म से ही कवच और कुंडल था जिसकी वजह से वो लगभग अमर थे ।
किंतु पांडवो को महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए कर्ण को मारना बहुत जरूरी था इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने देवराज इन्द्र को बुलाकर कर्ण का कवच और कुंडल मांगने को कहा जो कि इन्द्र अर्जुन के धर्म पिता थे इसीलिए वो अर्जुन के लिए कवच और कुंडल मांगने को तैयार हो गए ।
दानवीर कर्ण का एक नियम था कि सुबह स्नान करने के बाद जो भी उससे कुछ भी मांगता था तो कर्ण कभी मना नहीं करते थे इसीलिए देवराज इन्द्र कर्ण के पास ठीक उसी समय ब्रम्हण का वेश धारण कर पहुंचते हैं और कवच कुंडल मांग लेते हैं और कर्ण बिना उनसे कुछ पूंछे कवच कुंडल दान कर देते हैं। जिससे देवराज इन्द्र खुश होकर अपने असली रूप में आते हैं और कर्ण को दानवीर की उपाधि के साथ एक अमोघ बाण प्रदान करते हैं जिसका इस्तेमाल वेे एक ही बार कर सकते थे ।
इसके बाद कर्ण जब युद्ध में भाग लेते हैं तो वो अर्जुन के हांथों मारे जाते हैं जिस वजह से कर्ण का कवच और कुंडल इन्द्र को देना अंतिम दान था।
दानवीर कर्ण का वध
दानवीर कर्ण एक महान योद्धा थे जिनकी तारीफ स्वयं भगवान श्री कृष्ण भी किया करते थे।
जब कर्ण और अर्जुन में युद्ध चल रहा था तब अर्जुन के बाण मारने से कर्ण का रथ करीब 10 कदम पीछे चला जाता था और जब कर्ण अर्जुन पर बाण चलाते थे तब अर्जुन का रथ मात्र 3 कदम ही पीछे जाता था लेकिन भगवान श्री कृष्ण कर्ण की तारीफ करते बोलते वाह कर्ण वाह तुम धन्य हो ऐसा जब भगवान श्री कृष्ण कई बार किए तो अर्जुन ने पूछा भगवन मेरे बाण चलाने से कर्ण का रथ 10 कदम तक पीछे चला जाता है फिर क्यूं आप मेरी तारीफ के बजाय कर्ण की तारीफ कर रहे हैं तब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि तुम्हारे रथ में पूरे जगत का पालन कर्ता मै स्वयं बैठा हूं और रथ के छतरी में महाबली हनुमान बैठे हुए हैं फिर भी कर्ण तुम्हारे रथ को 3 पग पीछे कर दे रहा है सोचो यदि हम दोनों तुम्हारे रथ में ना होते तो तुम्हारे रथ का पता ही नहीं चलता कहां पहुंचा।
लेकिन कर्ण की कुछ गलतियों की वजह से कर्ण युद्ध में परास्त हुए और मारे गए।
पहली गलती उनकी ये थी कि उन्होंने देवराज इन्द्र को अपना कवच कुंडल दान में दे दिया था।
दूसरी गलती उनकी ये थी कि जब वो परशुराम से शिक्षा लेने गए थे तो उन्होंने अपनी जाति छुपाई थी और उन्हे अपनी जाति ब्राम्हण बताया था क्यों कि परशुराम केवल ब्राम्हणों को ही शिक्षा देते थे लेकिन जब परशुराम को पता चला ये ब्राम्हण नहीं है तो उन्होंने कर्ण को शाप दिया कि जब तुम्हे मेरे द्वारा दिए गए विद्या की सबसे ज्यादा जरूरत होगी तब तुम ये विद्या भूल जाओगे।
और ऐसा हुआ भी अर्जुन से युद्ध करते समय कर्ण अपनी धनुर विद्या भूलने लगे और वो फिर अर्जुन के सामने कमजोर पड़ने लगे जिससे अर्जुन ने अपने दिव्यास्त्र का प्रयोग करके कर्ण का वध कर दिया।
दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार
कर्ण का वध अर्जुन के द्वारा कर देने पर जब माता कुंती को ये बात पता चलती है तो वो खुद को रोक नहीं पाती और और कर्ण के शव के पास आकर फूट फूट कर रोने लगती हैं ये दृश्य देखकर पांडवों को बहुत आश्चर्य होता है और वो माता कुंती से पुंछते हैं कि आप इस शूद पुत्र के मरने पर क्यों रो रही हो तब माता कुंती बताती हैं ये मेरा ही पुत्र है और तुम लोगों का सगा बड़ा भाई है ये बात जानकर युधिष्ठिर बहुत क्रोधित होते हैं और माता कुंती सहित सभी स्त्री जाति को शाप देते हैं कि आज के बाद कोई भी स्त्री अपने मन में कोई भी रहस्य छुपा नहीं पाएगी इसीलिए स्त्रियों को कोई भी रहस्य की बात नहीं बताने चाहिए।
पांडवो के पता चलने के बाद वो कर्ण की अंतिम संस्कार की तैयारी करते हैं और अग्नि देने के लिए युधिष्ठिर आगे आते हैं तभी वहां पर दुर्योधन आ जाता है और युधिष्ठर को अग्नि देने से रोक देता है और कहता है जब तक मेरा मित्र जिंदा था तब तक तुम लोगों ने इसे हमेशा सूद पुत्र कहकर अपमान किया है इसीलिए मेरे मित्र को मैं अग्नि दूंगा ये मेरे मित्र के साथ मेरे भाई से भी बढ़कर था और फिर दुर्योधन कर्ण के शव को अग्नि देता है इस प्रकार कर्ण का अंतिम संस्कार किया गया।
दोस्तो मैं आशा करता हूं कि आप लोगों को Danveer Karna ki Kahani in Hindi जरूर पसंद आई होगी।
Frequently Asked Questions for Danveer Karna ki Kahani in Hindi
Q1. महाभारत में कर्ण के गुरु कौन थे?
महाभारत में कर्ण के गुरु परशुराम थे जिनसे कर्ण ने अपने आप को ब्राम्हण बताकर दीक्षा ली थी।
Q 2. अर्जुन और कर्ण में कौन शक्तिशाली था?
अर्जुन और कर्ण में सबसे ज्यादा शक्तिशाली कर्ण था और इस बात को स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने भी स्वीकार किया था।
Q 3. वृषकेतु किसका पुत्र था?
वृषकेतु कर्ण का पुत्र था जो महाभारत के युद्ध में केवल कर्ण के पुत्रों में से जीवित बचा था।
Q 4. कर्ण के बचपन का नाम क्या था?
कर्ण के बचपन का नाम राधे था।